lakh ki chudiyan summary in english

NCERT Solution for Hindi Vasant Class 8 are provided to students so that they can get the help that they need. Home Class 8 Hindi Chapter 2 – लाख की चूड़ियाँ Page No 10: Question 1: बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था? By continuing, I agree that I am at least 13 years old and have read and agree to the. They can be found beautifully studded by glass pieces, colorful beads or even precious stones. Lakh ki Chudiyan; Lakh Kade; Designer Bangles; Brass Bangles; Seep Bangles; About Us; Contact Us; Special; Lakh Kade ; Lakh Kade . Students of Class 8 of the CBSE board follow the Hindi Book Vasant for their schoolwork. CBSE recommends NCERT books and most of the questions in CBSE exam are asked from NCERT text books. Last Update: 2020-10-04 Usage Frequency: 1 Quality: Reference: Anonymous. Your email address will not be published. विनिमय की प्रचलित पद्धति क्या है? (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); कामतानाथ की कहानी “लाख की चूड़ियाँ” शहरीकरण और औद्योगिक विकास से गाँव के उद्योग के ख़त्म होने के दुख को चित्रित करती है। यह कहानी रिश्ते-नाते के प्यार में रचे-बसे गाँव के सहज सम्बन्धो में बिखराव और सांस्कृतिक नुकसान के आर्थिक कारणों को स्पष्ट करती है।, यह कहानी एक बच्चे और बदलू मामा की है। जो उसे लाख की गोलियाँ बनाकर देता है और वह बच्चा इस बात से बहुत खुश होता है। धीरे-धीरे समय बीतता है और वह बच्चा बड़ा होने के बाद एक बार फिर गॉंव आता है और बदलू से मिलकर औपचारिक बात करते हुए उसे मालुम होता है की गांव में “लाख की चूड़ियाँ” बनाने का कामकाज लगभग ख़त्म हो रहा है।, बदलू इस बदलाव से दुखी है किन्तु वो अपने उसूल नहीं त्यागता तथा साथ ही अपना जीवन चलाने के लिए कई और रास्ते निकाल लेता है। इस कहानी में लेखक विपरीत परिस्थितियों में भी अपने उसूल को न त्यागने की सीख देता है तथा उन्हें इस बात पर संतोष भी है।, इस पाठ के द्वारा लेखक लघु उद्योग की ओर पाठको का ध्यान करवा रहे है। वे कहते हैं कि बदलते समय का प्रभाव हर वस्तु पर पड़ता है। बदलू व्यवसाय से मनिहार है। वह अत्यंत आकर्षक चूड़ियाँ बनाता है। गाँव की स्त्रियाँ उसी की बनाई चूड़ियाँ पहनती हैं। बदलू को काँच की चूड़ियों से बहुत चिढ़ है। वह काँच की चूड़ियों की बड़ाई भी नहीं सुन सकता तथा कभी-कभी तो दो बातें सुनाने से भी नहीं चूकता ।, शहर और गाँव की औरतों की तुलना करते हुए वह कहता है कि शहर की औरतों की कलाई बहुत नाजुक होती है। इसलिए वह लाख की चूड़ियाँ नहीं पहनती है। लेखक अकसर गाँव जाता है तो बदलू काका से जरूर मिलता है क्योकि वह उसे लाख की गोलियां बनाकर देता है। परन्तु अपने पिता जी की बदली हो जाने की वजह से इस बार वह काफी दिनों बाद गाँव आता है।, वह वहां औरतों को काँच की चूड़ियाँ पहने देखता है तो उसे लाख की चूड़ियों की याद हो आती है वह बदलू से मिलने उसके घर जाता है।बातचीत के दौरान बदलू उसे बताता है कि लाख की चूड़ियों का व्यवसाय मशीनी युग आने के कारण बंद हो गया है और काँच की चूड़ियों का प्रचलन बढ़ गया है।, इस पाठ के द्वारा लेखक ने बदलू के स्वभाव, उसके सीधेपन और विनम्रता को दर्शाया है। मशीनी युग से आये परिवर्तन से लघु उद्योग की हानि परप्रकाश डाला है। अंत में लेखक यह भी मानता है कि काँच की चूड़ियों के आने से व्यवसाय में बहुत हानि हुई हो किन्तु बदलू का व्यक्तित्व काँच की चूड़ियों की तरह नाजुक नहीं था जो सरलता से टूट जाए।, सारे गाँव में बदलू मुझे सबसे अच्छा आदमी लगता था क्योंकि वह मुझे सुंदर-सुंदर लाख की गोलियाँ बनाकर देता था। मुझे अपने मामा के गाँव जाने का सबसे बड़ा चाव  यही था कि जब मैं वहाँ से लौटता था तो मेरे पास ढेर सारी गोलियाँ होतीं, रंग-बिरंगी गोलियाँ जो किसी भी बच्चे का मन मोह लें।, लेखक आपने बारे में बताता है कि जब लेखक छोटे थे बदलू यानी उनके मामा जो उन्हें सबसे अच्छे लगते थे।  वे उन्हें वह सुंदर-सुंदर लाख की गोलियाँ बनाकर खेलने के लिए देता था।, लेखक को अपने मामा के गाँव जाने की सबसे ज़्यादा  ख़ुशी यही थी कि जब लेखक की छुट्टयाँ खत्म हो जाने के बाद वह अपने घर लौटते थे तो उनके  पास बहुत सारी लाख की रंग बिरंगी गोलियाँ हुआ करती थीं। जो रंग-बिरंगी गोलियाँ जिन्हें देखकर बच्चों का मन उनकी तरफ आकर्षित हो जाए। इतनी सुंदर गोलियाँ उनके मामा बदलू बनाकर देते थे। ऐसी गोलियाँ दूसरों बच्चों के पास शायद नहीं हुआ करती थीं। उन काँचों के साथ खेलना लेखक को बहुत अच्छा लगता था। वो देखने में ही इतनी रंग-बिरंगी थी कि मन मोहित हो जाता था।, यह कहानी लेखक के बचपन की है।  वह अपने मामा के घर जाता है और वहाँ पर जो बदलू मामा के द्वारा बनाई गई सुन्दर-सुन्दर लाख की गोलियाँ के साथ खेलता है, प्रसन्न होता है और उसे गाँव जाना तथा अपने मामा के गाँव जाना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि जब वह वापस आता है तो उसके पास बहुत सारी ढे़र सारी काँच की गोलियाँ होती हैं जिसे वह अन्य बच्चों को दिखकर प्रसन्नता महसूस करता है।, वैसे तो मेरे मामा के गाँव का होने के कारण मुझे बदलू को ‘बदलू मामा’ कहना चाहिए था परंतु मैं उसे ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ कहा करता था जैसा कि गाँव के सभी बच्चे उसे कहा करते थे। बदलू का मकान कुछ ऊँचे पर बना था।, जैसा कि रिश्ते  में होता है कि माँ के गाँव में रहने वाले जो व्यक्ति हैं या तो वह नाना हैं या मामा हैं, परन्तु लेखक बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ कहा करता था क्योंकि गाँव के अन्य बच्चे भी  मामा को काका कहते थे । तो लेखक मामा न कहकर काका बुलाने लगे।, बदलू का मकान कुछ ऊँचे पर बना था। थोड़ी ऊंचाई पर बना था जहां पर वह जाते थे और उनके कार्य को देखते थे की वह किस तरह लाख की चूड़ियाँ बनाते हैं गोलियाँ बनाते हैं उनको काम करते हुए देखना लेखक को बहुत अच्छा लगता था।, मकान के सामने बडा़-सा सहन था जिसमें एक पुराना नीम का वृक्ष लगा था। उसी के नीचे बैठकर बदलू अपना काम किया करता था। बगल में भट्टी दहकती रहती जिसमें वह लाख पिघलाया करता।, जो बदलू मामा का मकान था वह थोड़ा ऊँचे पर था और मकान के सामने बड़ा-सा आँगन था जिसमें एक पुराना नीम का पेड़ था उसी के नीचे  बैठकर बदलू अपना काम करते थे। उनके पास ही भट्ठी जलती रहती थी क्योंकि लाख को पिघलाकर उसे आकार दिया जाता था ।, जैसा कि तस्वीर में दर्शाया गया है कि एक तरफ भट्ठी है जहाँ पर लाख को पिघलाया जाता है और यहाँ पर एक औज़र है जिसके द्वारा वो लाख को आकार  दे कर चूड़ियाँ बना रहें हैं। और साथ में उन्हें हुक्का पीने का भी बहुत शौक हुआ करता था। काम के साथ-साथ वह हुक्का भी पी लेते थे।, सामने एक लकड़ी की चौखट पड़ी रहती जिस पर लाख के मुलायम होने पर वह उसे सलाख के समान पतला करके चूड़ी का आकार देता। पास में चार-छह विभिन्न आकार की बेलननुमा मुँगेरियाँ रखी रहतीं जो आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होतीं।, यहाँ पर यह बताया गया है कि बदूल मामा लाख की चूड़ियाँ किस तरह से बनाते थे । एक चौखट होती थी, लकड़ी का चौकोर टुकड़ा होता था जिसपर वह लाख को आग में सुलगा कर मुलायम कर देते थे और एक धातु की छड़ के समान पतला करके उसे चूड़ी का आकर दे देते थे।, पास में चार-छ अलग-अलग तरह की गोल-लकड़ी होती थी जिसकी सहायता से वह मोटी और पतली तरह की चूड़ियाँ बनाई जा सकती थी। उस समय में औरतें इसी प्रकार की चूड़ियाँ पहनना पंसद करती थी। इसी कारण से बदलू मामा चूड़ियाँ बनाया करते थे।, लाख की चूड़ी का आकार देकर वह उन्हें मुँगेरियों पर चढ़ाकर गोल अैर चिकना बनाता अैर तब एक-एक कर पूरे हाथ की चूड़ियाँ बना चुकने के पश्चात् वह उन पर रंग करता।, लाख की चूड़ी का आकार देने के बाद उन्हें रंग-बिरंगे रंग दे देता था। जिससे चूड़ियाँ दिखने में और सुंदर लगती थी।, सीधे शब्दों में कहा जाए तो जब चूड़ियाँ बनकर तैयार हो जाती थीं मुँगेरियों पर चढ़ाकर उन्हें गोल सुन्दर आकर दे दिया जाता था उसके बाद उन पर अलग-अलग तरह के रंग कर दिया जाता था जैसा कि औरतें रंग-बिरंगी चूड़ियाँ पहनना पसंद करती हैं।, यहाँ तस्वीर  में आप देख रहें हैं गोल मुँगेरि है जिस पर एक लाल रंग की चूड़ी बनाई गयी है लाख के द्वारा।, बदलू यह कार्य सदा ही एक मचिये पर बैठकर किया करता था जो बहुत ही पुरानी थी। बगल में ही उसका हुक्का रखा रहता जिसे वह बीच-बीच में पीता रहता। गाँव में मेरा दोपहर का समय अधिकतर बदलू के पास बीतता। वह मुझे ‘लला’ कहा करता और मेरे पहुँचते ही मेरे लिए तुरंत एक मचिया मँगा देता।, बदलू हमेशा एक चारपाई पे काम किया करता था । उसकी चारपाई थी वह बहुत पुरानी थी; पुराने ज़माने में लोग इस तरह की चारपाई पर बैठा करते थे और अपने काम भी किया करते थे। जब वह काम से थोड़ी फुर्सत पाता, बीच-बीच में अपना हुक्का पी लिया करता था।, जब लेखक गाँव में मामा के घर जाते, तो उनका अधिकतर समय बदलू मामा के साथ बीतता। क्योंकि उनके पास बैठना, उन्हें काम करते देखना उन्हें अच्छा लगता था। वह उन्हें प्यार से लला कह कर पुकारते थे। और उनके  पहुँचने पर चारपाई माँगवा देते थे। और कहा करते थे कि तुम यहाँ पर बैठो और देखो कि में किस तरह से काम करता हूँ।, मैं घंटों बैठे-बैठे उसे इस प्रकार चूड़ियाँ बनाते देखता रहता। लगभग रोज ही वह चार-छह जोड़े चूड़ियाँ बनाता। पूरा जोड़ा बना लेने पर वह उसे बेलन पर चढ़ाकर कुछ क्षण चुपचाप देखता रहता मानो वह बेलन न होकर किसी नव-वधू की कलाई हो।, घंटों बीत जाते, समय ज्यादा हो जाता लेकिन लेखक ऐसे ही बैठा रहता क्योंकि उनके काम करने का तरीका ही रोचक था । कभी वह लाख पिघलाते थे फिर मुँगेरि पर उस लाख को चढ़ाकर एक नया आकर दे देते थे। और रंग-बिरंगी  चूड़ियाँ बनाते थे। इस तरह वह लगभग दिन में 4-6 जोडे़ चूड़ी बनाते थे। देखा जाए तो यह बहुत मेहनत भरा काम था।, पूरा जोड़ा तैयार हो जाने पर वह बेलन पर चढ़ा कर कुछ पल के लिए चुपचाप उसे देखते रहते थे । जब बदलू मामा अपने काम को देखते कि चूड़ी का सही आकर बना है या नहीं, तो प्रसन्न होते । मानो वह बेलन न होकर किसी नई दुल्हन की कलाई हो। अर्थात् छड पर चढ़ी चूड़ियों को इस तरह से निहारते थे जैसे कि किसी नई दुल्हन की कलाई हो।, बदलू मनिहार था। चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा था और वास्तव में वह बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई हुई चूड़ियों की खपत भी बहुत थी।, जो चूड़ियाँ बनाता है उसे मनिहार कहा जाता है, जैसे बदलू मामा का काम था – चूड़ी बनाना। पैतृक यानि पिता सम्बन्धी अर्थात् जो बदलू मामा के पिता थे या दादा थे वह भी चूड़ियाँ ही बनाने का काम करते थे; यह उनका रोजी-रोटी कमाने का तरीका था। वह बहुत ही सुंदर-सुंदर चूड़ियाँ बनाता था। बदलू अपने काम में बहुत ही निपूंण था। उसके द्वारा बनाई गई चूड़ियों की बिक्री भी बहुत होती थी। लोग उससे बहुत सारी चूड़ियाँ खरीदते थे क्योंकि वह चूड़ियाँ बहुत ही मजबूत और सुंदर बनाता था।, उस गाँव में तो सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती ही थी आस-पास के गाँवों के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। परंतु वह कभी भी चूड़ियों को पैसों से बेचता न था। उसका अभी तक वस्तु-विनिमय का तरीका था और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे।, सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती थी और आस-पास के गाँव के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे । उसका काम ही इतना अच्छा था कि उसके गाँव के अलावा दूसरे गाँव के लोग भी चूड़ियाँ खरीद कर ले जाते थे। परन्तु वह कभी भी चूड़ियाँ पैसों  से नहीं बेचता था । उसका तो सीधा हिसाब था कि वस्तु के बदले वस्तु लेना अर्थात् जैसा कि पुराने समय में हुआ करता था कि अगर हमें अनाज लेना है तो उसके बदले हमारे पास जो भी चीज़ उपलब्ध है वो देकर हम अपनी मन पसंद चीज़ खरीद सकते थे। और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। कहने का अर्थ यह है कि पैसों के बदले अनाज ले लिया जाता था।, बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था। मैंने कभी भी उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा। हाँ, शादी-विवाह के अवसरों पर वह अवश्य जिद़ पकड़ जाता था। जीवन भर चाहे कोई उससे मुफ्त चूड़ियाँ ले जाए परंतु विवाह के अवसर पर वह सारी कसर निकाल लेता था। आखिर सुहाग के जोड़े का महत्त्व ही और होता है।, बदलू का स्वभाव नम और भोला भाला था। न वह किसी से ज्यादा बात करता और न ही कभी किसी से लड़ता-झड़ता था। उसे ज़रा सा भी गुस्सा नहीं आता था सारा दिन अपने काम में जो लगा रहता था। हाँ शादी-विवाह के समय में अवश्य जिद् किया करता था। क्योंकि यही एक अवसर हुआ करता था जो कि वः अपनी चूड़ियाँ बेच कर अच्छा कमा सकता था। अर्थात् मनचाहा  वेतन ले सकता था।, किसी भी विवाह के अवसर पर  वह अपनी चूड़ियों की एक अच्छी खासी कीमत ले लेता था। जिससे उसका गुज़ारा ठीक से चल जाता था । आखिर सुहाग के जोड़े का महत्व ही कुछ खास होता है। यह एक महत्वपूर्ण चीज है कि सुहाग के जोड़े को बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसीलिए उसको मुँह माँगे दाम मिल जाते थे।, मुझे याद है, मेरे मामा के यहाँ किसी लड़की के विवाह पर जरा-सी किसी बात पर बिगड़ गया था और फिर उसको मनाने में लोहे लग गए थे।, एक बार की बात है लेखक को याद आया कि बदलू मामा किसी लड़की के विवाह पर छोटी सी बात पर नाराज़ हो गया, बिगड़ गया। और उसे मनाना बहुत मुश्किल हो  गया था।, विवाह में इसी जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए उसकी घरवाली को सारे वस्त्र मिलते, ढेरों अनाज मिलता, उसको अपने लिए पगड़ी मिलती और रुपये जो मिलते सो अलग।, विवाह में इसी जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए उसकी पत्नि को सारे वस्त्र मिलते, अर्थात् बदलू मामा की पत्नि को भी वस्त्र मिल जाते थे जब किसी का विवाह होता था । उस विवाह पर बदलू के द्वारा बनाई गई चूड़ियाँ इस्तेमाल कि जाती थी तो घर के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ भेंट स्वरूप मिल जाता था। बहुत सारा अनाज मिल जाता था जिससे घर का गुज़ारा अच्छे से हो जाता था  । उसको अपने लिए पगड़ी मिल जाती थी, (पगड़ी का अर्थ है पग जो सिर पर बँधाते है ) और जो रूपये मिलते वो अलग से। कुछ लोग भेंट स्वरूप उसे रूपये दे देते थे जोकि एक अच्छा मौका था अच्छी खासी आमदनी कमाने का । उससे उसका पूरे साल का खर्चा चल जाता था।, यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूड़ियाँ से। यदि किसी भी स्त्री के हाथों में उसे काँच की चूड़ियाँ दिख जातीं तो वह अंदर-ही-अंदर कुढ़ उठता और कभी-कभी तो दो-चार बातें भी सुना देता।, उसे काँच की चूड़ियाँ जरा सी भी पसन्द नहीं थी क्योंकि वह लाख की चूड़ियाँ बनाता था। काँच की चूड़ियाँ लोगों को पसंद आने लगी थी क्योंकि गाँव में भी शहरीकरण हो गया था। नए नए उद्योग शुरू हो गए थे मशीनों से चीज़ें बनाई जाने लगी थी। जोकि लोगों को पसंद आती थी। इस कारण उसका काम धंधा थोड़ा धीमा पड़ गया था और उसे काँच की चूड़ियाँ पसंद नहीं थी।, अगर वह किसी भी स्त्री के हाथों में काँच की चूड़ियाँ देख लेता तो मन ही मन दुखी हो जाता था। और कभी कभी तो दो चार बातें भी सुना देता।, मुझसे तो वह घंटों बातें किया करता। कभी मेरी पढा़ई के बारे में पूछता, कभी मेरे घर के बारे में और कभी यों ही शहर के जीवन के बारे में। मैं उससे कहता कि शहर में सब काँच की चूड़ियाँ पहनते हैं तो वह उत्तर देता, शहर की बात और है, लला! 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